Wednesday 17 August 2011

ॐ अनेजदेकं मनसो

 4th Mantra of Isa-Upanishad     

 ॐ अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्षत्।
तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति॥४॥
                   
That One (Atman), though motionless, is faster than the mind. The senses (Devas) can never overtake It, for It ever goes before. Though immovable, It goes faster than those who run after It. It the all-pervading the air (Matarisvan) sustains all living beings.


ॐ असुर्या नाम ते लोका


3rd Mantra Of Isa-Upanishad

              
ॐ असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः।
ताँस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः॥३॥


After departing their bodies, they (those that are ignorant) who have killed the Self go to the worlds of the devils (as compared with the non-dual state of the supreme Self even gods are (Asuras), covered with blinding ignorance.

ॐ कुर्वन्नेवेह कर्माणि


2nd, Mantra of Ishavasyopanishada.

ॐ कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतँ समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥२॥
 
One should desire to live in this world a hundred years, one should live performing Karma (righteous deeds), by which method bad karma may not cling, i.e. one may not get attached to karma. Therefore, one should desire to live by doing only such karmas as Agnihotra etc.

(इस लोक मे कर्म करते हुए ही सौ वर्ष जीनेकी इच्छा करनी चाहिए। इसके सिवा और कोई मार्ग नहीं है, ऐसा करने से तुझे [अशुभ] कर्मका लेप नहीं होगा ॥2॥) 

ॐ ईशा वास्यमिदँ सर्वं

1st Mantra Of Isa-Upanishad

 
 ॐ ईशा वास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥१॥



All this whatsoever exists in the universe, should be covered by God, in other words by perceiving the Divine Presence everywhere. Having renounced (the unreal), enjoy (
the Real). Do not covet the wealth of any man.

(जगत् मे जो कुछ स्थावर-जङ्गम संसार है, वह सब ईश्वर के द्वारा व्याप्त है। उसका त्याग-भाव उपभोग करना चाहिए ,किसीके धन की इच्छा नहीं करनी चाहिए ।।1।।)

ॐ शान्ति पाठ

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
     ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥
                            
Om! That (Karana Brahma) is a complete whole. This (Karya Brahma) too is a complete whole. From the complete whole only, the (other) complete whole rose. Even after removing the complete whole from the (other) complete whole, still the complete whole remains unaltered and undisturbed.
                    OM! PEACE! PEACE! PEACE!


ॐ वह (परब्रह्म) पूर्ण है और यह (जगत) भी पूर्ण है; क्योंकि पूर्ण (परब्रह्म) से ही पूर्ण (जगत) की उत्पत्ति होती है। तथा पूर्ण (जगत) का पूर्णत्व लेकर (अपने में समाहित करके) पूर्ण (परब्रह्म) ही शेष रहता है। त्रिविध ताप (आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक) की शांति हो।
    ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥

"ईशावास्योपनिषद् प्रपीठिका"


उपनिषदें शाश्वत ज्ञान का अक्षय स्त्रोत है । सारे संसार मे कोई ऐसा दर्शन नहीं , विचार धारा नहीं जो इनसे प्रभावित नहीं हुई हो । उपनिषदों का दूसरा नाम रहस्य विद्या भी है । जो अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय संस्कृति की सभी विचार धाराओ को जीवन दान करती है । उपनिषदों मे उस काल अध्यात्म एवं दर्शन संबंधी सामग्रियों के भव्यचित्र ही नहीं सँजोये गए अपितु भारतीय जीवन दर्शन के सभी पहलुओ का गंभीर विवेचन भी उनमे किया गया है। मानव जीवन मे ही नहीं , इस निखिल विश्व मे व्याप्त सत्य की जिज्ञासा एवं उसके अन्वेषण के लिए उपयोगी साधना की ऐसी उत्कट उत्कंठा उसमे व्यक्त है ; जो विश्व के विस्तृत वाङ्ग्मय मे अन्यत्र दुर्लभ है । उपनिषदों की एक एक वाणी मे अमर तेज और वह शांति दायी आलोक है , जिसे पढ़कर , गुणकर और आचरण कर कितनों की आंखे खुल गयी , कितने सिद्ध बन गए ,कितने जीवन मुक्त हो गए । सहस्त्रों वर्षो से ये सरस्वती के आलोकमय प्रासाद अकिंचनता मे भी कुबेर की समृद्धि अथवा भौतिक अभावों मे भी आध्यात्मिक शांति की निधि लुटाते चले आ रहे है । इन्हे जानने वाले के लिए कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता । कल्पद्रुम के सामने पहुच कर कामनाओ का उदय कैसे हो सकता है ।